हरि सों मिलन की चाह

हरि सों मिलन की चाह न उपजै कोटि पदार्थ चाहयो
विषयन संग रहयो भरमातो कबहुँ हरि गुण नाँहिं गायो
आधे आखर हरि मिलेहो सुनत रहयो मुख सन्ता
मुख से नित हरिगुण बखानो चाहो जिव्हा अनन्ता
व्यर्थ गमायो जीवन आपनो कियो न क्षण सतसंगा
तड़पत रहयो विषय अग्न माँहिं ज्यूँ नित जले पतंगा

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