कहाँ गयी
कहाँ गई कहो सखे मम हिय की बिरह पीर
दृगन जल ऐसो सूख गयो बाँवरी भई अधीर
कौन चुरावे लेय गयो सखी मेरो बिरह ताप
जलत न हिय पाथर मेरो उठे नाँहिं संताप
पिय बिन कोऊ पीर नाँहिं किधर गयो सब नेह
प्रेम रस मेरो हिय नाँहिं रहयो होवै मोहे सन्देह
हाय !! बाँवरी खोय दियो पिय प्रेम की पीर
हिय नाँहिं पिय न बिरह पीर नैनन सुखयो नीर
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