हूँ पतित

हूँ पतित मैं कोटि जन्म से नाथ सच तो यह है कि तुमको पुकारा नहीं
आ ही जाते हृदय पट खोले नहीं मन मंदिर में तुमको पधारा नहीं

तेरे मिलने में तो कोई देरी नहीं
ऐसी भक्ति बनी नाथ मेरी नहीं
न किये अर्पित भाव पुष्प कभी , कभी तेरी मूरत को शिंगारा नहीं
हूँ पतित ......

हृदय भरी रही जगत की कामना
न ही जप तप बना न कोई साधना
न मिली कोई फुर्सत इस जगत से कभी, नज़र भर तुमको निहारा नहीं
हूँ पतित ......

तेरी पकड़ी न राह न उठे यह कदम
हृदय रमता रहा वासना में हर दम
डूबती जा रही भँवर में नैया मेरी बिन तेरे कोई भी सहारा नहीं
हूँ पतित मैं कोटि जन्म से नाथ सच तो यह है कि तुमको पुकारा नहीं
आ ही जाते हृदय पट खोले नहीं मन मंदिर में तुमको पधारा नहीं

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