मेरा विश्राम
मेरा विश्राम......
क्या मुझे प्रेम हुआ तुमसे
पुनः पुनः प्रश्न किया स्वयम से
नहीं
नहीं
नहीं हुआ
मुझे तुमसे प्रेम न हुआ
होता तो कभी लौट पाती
सुना है प्रेम दो को एक करता है
प्रेम होता तो लौटना न था
परन्तु मैं लौटी
पुनः पुनः लौटी
उस संसार मे
शायद तुम्हारी ही तलाश में
परन्तु हर बार हृदय का ताप बढ़ा
फिर कानों में तुम्हारी पुकार पड़ी
आई तुम्हारी ओर
कुछ ही क्षण
पुनः लौट गई
परन्तु हृदय की वेदना बढ़ती गयी
हाँ बढ़ती गई
तुम पुनः पुनः पुकारते रहे
क्षण भर तुम्हारी ओर
हाय !!!
पुनः पुनः लौटना
मेरे हृदय के ताप को बढ़ा देता
यह ताप मुझे जलाता रहता
तुम्हें प्रेम है
रोक लो मनहर
रोक लो
अबकी तुम्हारी पुकार सुन आऊँ
पुनः मत लौटने देना
तुम ही रोक सकते हो मुझे
मेरा सामर्थ्य नहीं
परन्तु हृदय एक ही बात जानता है
लौटे बिना कोई जीवन ही नहीं
क्योंकि मेरी यात्रा का विश्राम
तुम हो
हाँ
तुम्हीं हो मनहर
Comments
Post a Comment