हिय की पीर

हिय की पीर कासों कहूँ री सखी, बिन नन्दनन्दन कछु भी सुहावै ना
जब ते बिछुरै मनमोहन पिया , बाँवरी भई री और कछु भावै ना
रैन दिवस तेरी मग जोवत रहूँ , बाँवरी अखियां कोऊ द्वारे जावै ना
बिरह ताप माँहि जर जर जाऊँ, बाँवरी अखियाँ काहू से लगावै ना
मनमोहन तुम्हीं प्राण मेरो मुख ते कहत रहूँ, काहू से लजावै ना
प्रीत की डोर बाँधी तोसे प्राणधन, और काहू से कहनो सुहावै ना
आन मिलो प्राणवल्लभ विलम्ब न कीजौ, बाँवरी अधीर होय प्राण धरावै ना

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