क्यों हूँ जिंदा

क्यों हूँ ज़िंदा मुझे जीने की कोई वजह तो दो
अब तलक इश्क़ न हुआ कोई सज़ा तो दो

क्यों तुझसे दूर रहकर भी साँसें चलती हैं
तुझसे मिलने की ख्वाहिशें न कभी मचलती हैं
ख्वाब हल्के से उडें कैसे ज़रा हवा तो दो
क्यों हूँ ज़िंदा ......

अब तो बसदर्द ही दर्द पीने को बेताब हूँ मैं
है खबर तुमको सारी इक खुली किताब हूँ मैं
नाम अपना इसके खाली पन्नों पर लिखा तो दो
क्यों हूँ ज़िंदा ......

काश सारी उम्र सुलगने में चली जाए यूँ ही
तुझसे मिलने की हसरत अब भली जाए यूँ ही
कब कहा मैंने मुझे जख्मों की दवा तो दो
क्यों हूँ ज़िंदा ......

ना हुआ इश्क़ अब तलक तो क्यों ज़िंदा हूँ
खुद के वजूद से ही साहिब मैं शर्मिंदा हूँ
मुझको बर्बाद होने की कोई दुआ तो दो
क्यों हूँ ज़िंदा मुझे जीने की कोई वजह तो दो
अब तलक इश्क़ न हुआ कोई सज़ा तो दो

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