ये जो आग सी लगी है

ये जो आग सी लगी है
बुझाऊँ तो कैसे
तू क्यों जुदा है मुझसे
मैं आऊँ तो कैसे

जब तेरा जिक्र न था
क्या थी मेरी ज़िंदगी
तुझे बुलाते हुए हाल
मैं दिखाऊँ तो कैसे

अपनी ही मौज थी मेरी
अपनी ही मस्ती थी
अब ऐसे होश गुम हैं
पता पाऊँ तो कैसे

न तू मिला हाय मुझे
न मेरी मैं बाकी रही
अब पूछे कोई मेरा जो
पता बताऊँ तो कैसे

ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी नहीं
क्या हाल हुआ है
दम भी नहीं निकलता
जी पाऊँ तो कैसे

मेरे हिस्से में बेचैनियां
अश्क़ और तन्हाइयां
तू सुनेगा किस्से इश्क़ के
हाय सुनाऊँ तो कैसे

या तो मौत मुझे दे दे
या दूरी अब मिटा दे
जुबाँ खामोश हो चली
कह पाऊँ तो कैसे

ग़र तू इश्क़ समझता है
रूह के दर्द भी देख
हर धड़कन तेरा नाम ले
सुनाऊँ तो कैसे

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