कोई दर्द गुनगुनाना चाहती हूं
कोई दर्द गुनगुनाना चाहती हूँ
ज़िंदा हूँ ये भुलाना चाहती हूँ
नहीं कहनी कोई दिल की बात तुमको
तुमसे मैं सब छिपाना चाहती हूँ
नहीं हुई मोहब्त मुझे ये अब एहसास हुआ
तू भी सुन ले तुमको बताना चाहती हूँ
दर्द ही अब मेरी दवा बन चुके
पीकर कुछ दर्द मुस्कुराना चाहती हूँ
किसको क्या कहूँ हाल ए दिल कौन समझे
मैं क्या किसको बताना चाहती हूँ
जाने क्यों खामोश न होती ये कलम मेरी
दिल के राज़ इससे छिपाना चाहती हूँ
ये गुस्ताख़ है जाने क्या क्या लिख देती है
इसको थोड़ा समझाना चाहती हूँ
खामोश रह अब और गुस्ताख़ी न कर तू
इसको भी कोई दर्द लगाना चाहती हूँ
कुछ दर्द हो इसे तो ये भी खामोश रहे
दर्द की कोई बात सुनाना चाहती हूँ
मेरी कहाँ सुनती है अपनी ही धुन में रहती है
खुद ही लिखती है मै कहाँ लिखवाना चाहती हूँ
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