जोबन की ऋतु
जोबन की रुत बीत चली रे अब तो आवो कन्हाई
बाँवरी तेरी दिन रैन पुकारे काहे दीन्हीं सुधि बिसराई
देह न राखै अबहुँ प्राण जी अखियाँ गई पथराई
काहे बालम तोसे नेह लगायो काहे आस लगाई
पिय पिय टेरत रही बाँवरी सब जग दीन्हों भुलाई
काहे विलम्ब करे मनमोहन काहे कीन्हीं पराई
आस छांड सकल जगत सों पिया तोसे आस लगाई
हिय की पीर कौन सों कहिहै बाँवरी तेरी अकुलाई
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