कहाँ हैं

लाख चाहतें हैं ज़माने की , कोई आरज़ू ए मोहबत कहाँ है
तेरी याद न जाए इस दिल से , ऐसी कोई आदतें कहाँ हैं

कभी अश्क़ मेरे बहते , दिल की कहानी कहते
कभी तेरे लिए रोती , गर मुझको मोहबत होती
कभी मैं तुझको खुदा कहती ,पर वो इबादतें कहाँ हैं
लाख चाहतें ......

गर तेरी आरज़ू होती दिल मे , न डूबती कश्ती साहिल में
अब कैसे करूँ मैं सज़दा , नहीं पकड़ा इश्क़ का रस्ता
न होते एहसास पत्थरों को , मुझमें उल्फ़तें कहाँ हैं
लाख चाहतें ......

न तेरी तड़प जगी है , न ही तुझसे लौ लगी है
न जुबां पर नाम तेरा , इस दिल मे सदा अंधेरा
दिल में तुमको मैं ठहराऊं , ऐसी फुरसतें कहाँ हैं
लाख चाहतें हैं ज़माने की  कोई आरज़ू ए मोहबत कहाँ हैं
तेरी याद न जाए इस दिल से , ऐसी कोई आदतें कहाँ हैं

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