अपने अश्कों का
अपने अश्कों का एक कतरा नहीं गिराना है
हाँ मुझे इस इश्क़ की आग में जल जाना है
तेरे बगैर कितनी मुद्दत जी लिया मैंने
भर भर जाम अश्क़ों का पी लिया मैंने
बेवजह जिंदा हूं मुझे आज मर जाना है
अपने अश्कों .....
सच तो यह है तुमसे दिल लगा न पाई मैं
यूँ ही गुज़री ये उम्र सारी बेवजह गवाई मैं
गर इश्क़ है तो तुम्हीं को अब निभाना है
अपने अश्कों .....
काश यह आग यूँ ही जला दे मुझे
मेरी बेवफाई का कोई तो सिला दे मुझे
तुम बिन मचलती सी बहारों में भी वीराना है
अपने अश्कों का एक कतरा नहीं गिराना है
हाँ मुझे इस इश्क़ की आग में जल जाना है
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