श्याम तेरे प्रेम रंग
शाम तेरे प्रेम रंग रँगाई बन्सी
मोहे न देवे सुनाई बन्सी
जिसने सुनी वो नहीं रुक सका
मोहे न पग भर हिलाई बन्सी
पाषाण को भी पिघला गयीं
ऐसी तूने मधुर बजाई बन्सी
मैं तो वो भी न बन सकी
हाय
मोहे न देवे सुनाई बन्सी
पुष्प कलियों का सौरभ महका
ऐसा मधुर रस पिलाई बन्सी
झरने लगा बनकर मकरन्द सा
ऐसा कुछ नाद सुनाई बन्सी
हाय
मोहे न देवे सुनाई बन्सी
विरह के अश्रु ही बहते रहे
प्रेम धुन न सुनाई बन्सी
निष्प्राण सी हूँ मैं तेरे प्रेम बिन
नहीं जीवन की आस बंधाई बन्सी
हाय
मोहे न देवे सुनाई बन्सी
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