क्या करूँ
तेरे बिना सुकून कहीँ न आये तो क्या करूँ
तेरा ही ज़िक्र छोड़ कुछ न भाये तो क्या करूँ
अश्कों से हैं पिरोई चंद लड़ियाँ मैंने प्यारे
तोहफ़ा कोई पसन्द और न आये तो क्या करूँ
दिल की लगी ये प्यारे करती है बेचैन मुझको
दिल के अरमान आँखों से बह जाये तो क्या करूँ
तुमको न कहेंगें हम गम ए दिल अपना कभी
किसी औऱ महफ़िल में दिल न जाये तो क्या करूँ
यही एक बात मुझको बता दो मेरे प्यारे
गर मेरा ये दिल कभी तुम्हें भुलाये तो क्या करूँ
यूँ ही पल पल जलना बन जाये शौक मेरा
और कोई ख्वाहिश ये दिल जलाये तो क्या करूँ
रग रग में लहू बनकर ऐसे तुम समा जाओ
कोई भी साँस बिन तेरे न आये तो क्या करूँ
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