तुमसे दिल लगाने की

तुमसे दिल लगाने की कभी मुझको हुई न हसरत
कैसे कहूँ साहिब मेरे मुझे तुमसे हुई मोहब्त

काश ये दिल मेरा कभी तेरे लिए धड़कता
काश इस दिल में होती तेरी हसरतों की हसरत
तुमसे दिल लगाने .....

फूलों के साथ देखे होंगे सभी ने काँटे
मोहब्त के गुल कहाँ खिले जिस दिल में होती नफरत
तुमसे दिल लगाने ......

गुस्ताखियां करना ही साहिब आदत मेरी पुरानी
तेरा जादू ही बदल सके मेरी जन्मों से बनी फितरत
तुमसे दिल लगाने......

ना तो इश्क़ करना आया न ही सलाम आया
गुस्ताख़ हूँ मुद्दत से मुझे आई कहाँ इबादत
तुमसे दिल लगाने की कभी मुझको हुई न हसरत
कैसे कहूँ साहिब मेरे मुझे तुमसे हुई मोहब्त

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