जय जय वृन्दावन
जय जय वृन्दावन धाम परम् सुख खान ।
कीजौ कृपा मो पतित जन पड्यो शरण तेरी आन ।।
जय जय श्री वृन्दावन तुम्हीं सों मेरो ठौर ।
बलहीन आश्रयहीन हूँ मैं पतितन को सिरमौर ।।
जय जय श्री वृन्दावन जहाँ युगल करें नित्य रास ।
मोहे चरण रज दीजिहो तुम्हीं सों कीजौ आस ।।
जय जय श्री वृन्दावन जय प्रेम रस महान ।
मो सो कूकर जन्मों सों करे विषय विष्ठा पान ।।
जय जय श्री वृन्दावन नित शरण तेरो गहूँ ।
जय जय श्री वृन्दावन कैसो तेरो महिमा कहूँ ।।
जय जय वृन्दा अटवी नैक मोपे दृष्टि डारौ।
जय जय ब्रजरानी कीजौ मन प्रेम को उजियारौ ।।
जय जय श्री वृन्दा विपिन कीजो प्रेम रस संचार।
जय प्रेम अद्भुत धाम अद्भुत महिमा को क्या पार ।।
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