क्या कहें किस्से
क्या कहें किस्से हम अपनी तन्हाइयों के
पीछे पीछे दौड़ते हैं उनकी परछाइयों के
हमको न मालूम था ऐसा भी कोई दौर होगा
जिसको हम तुम्हें समझे शख्स ही कोई और होगा
ग़र तुम चाहो तो हम तन्हाई में ही जी लेंगें
दर्द पीने के आदि हैं कहो तो जहर पी लेंगें
रुस्वा न करेंगें तुमको खामोश ही रह लेंगें
तन्हाइयों के आदी हैं तन्हा ही हम रह लेंगें
कुबूल करना मेरा ये आखिरी सलाम भी
समझना इसको मेरा तुम पैगाम ही
हमको अब तन्हाई की आदत हो चली
तुम कभी न आना ये हसरत हो चली
यूँ ही सिसकते हुए जीना क़ुबूल है
वैसे भी तेरे बिना हर साँस फ़िज़ूल है
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