क्या तुमसे
क्या तुमसे इश्क़ करना कोई खता मेरी
तनहाइयाँ रुसवाईयाँ ये क्यों सज़ा मेरी
भीगी रहती हैं आँखें पल पल दिल जलता है
तुमसे मिलने का ख़्याल क्यों दिल मे पलता है
जिन्दा हूँ पर नहीं है जीने की वज़ह मेरी
क्या तुमसे ......
पल पल का सिसकना अब आदत हो गई है
अश्कों को पीना ही मेरी चाहत हो गई है
बिखरी सी रहती है तनहाइयाँ सदा मेरी
क्या तुमसे .......
अब मैंने ये जाना है झूठा है इश्क़ मेरा
अब तो कभी न होगा हँसता हुआ सवेरा
कैसे तुमको भाएगी झूठी सी वफ़ा मेरी
क्या तुमसे .......
चलो कुछ और दर्द दे दो दर्दों में डूब जाऊँ
खामोश हो कलम ये न लिखूँ न सुनाऊँ
है गर इश्क़ तुमको हो कुबूल दुआ मेरी
क्या तुमसे .......
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