फिर एक

फिर एक चिंगारी ने दिल जलाया मेरा
हवाओं ने भी मुझे नाम याद दिलाया तेरा

तेरे ही नाम से शुरू होती बेचैनी मेरी
हुआ सुकून मुझे जब नाम याद आया तेरा
फिर एक चिंगारी ........

मुझको क्यों टूटने से डर लगता है साहिब
शीशे का क्यों ऐसा मकान बनाया मेरा
फिर एक चिंगारी .........

सच तो यह है मुझे तुमसे इश्क़ हुआ ही नहीं
रह रह कर मुझे क्यों इश्क़ याद आया तेरा
फिर एक चिंगारी .........

आईने में खुद को अक्सर गायब पाते हैं
एक बदला सा चेहरा ही नज़र आया तेरा
फिर एक चिंगारी .......

माना कि काबिल ए इश्क़ न हुए कभी हम
जैसे भी हैं खुद को अब है बनाया तेरा
फिर एक चिंगारी .......

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