कैसे
पल पल सिसकती रूह को करार हो तो कैसे
तू ही ज़रा बता दे तेरा दीदार हो तो कैसे
आँखों से हैं अश्क़ बहते
दिल की कहानी कहते
सुना है दिल का चमन फिर बहार हो तो कैसे
पल पल सिसकती......
कैसी यह दिल्लगी है
जो दिल को यूँ लगी है
वीराना सब तेरे बिना गुलज़ार हो तो कैसे
पल पल सिसकती ......
जो इश्क़ का इल्म होता
तो दिल को ये गम न होता
थम सी गई है जिन्दगी रफ़्तार हो तो कैसे
पल पल सिसकती .......
कोई हसरत रहे न बाक़ी
मुझे यूँ पिला दे साकी
तेरे इश्क़ के नशे में होश सरकार हो तो कैसे
पल पल सिसकती रूह को करार हो तो कैसे
तू ही बता दे तेरा दीदार हो तो कैसे
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