कैसो रीझे श्याम कन्हाई

कैसो रीझे श्याम कन्हाई , जगत को हृदय रह्यो बैठाय
सेवाहीन होय प्रेम विहीना , मुख ते कबहुँ नाम ना गाय
कबहुँ नाँहि भीजै दृग प्रेम सों , कबहुँ ना साँवर रही बुलाय
हृदय होय कठोर पाषाण सों , कैसो प्रेम सुधा को पाय
क्षण क्षण तूने व्यर्थ गमायो , लोभ मोह माँहि रह्यो भरमाय
जगत को रस मीठो लाग्यो , मुख ते कबहुँ हरिनाम न आय
कबहुँ न द्रवित होय चित तेरो , कबहुँ ना प्रेम को मार्ग भाय
बाँवरी नेक जाग भव निद्रा सों , पापन ते कबहुँ रह्यो शरमाय

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