दगाबाज होऊँ
दगाबाज होऊँ दगा करूँ नित हरिनाम कबहुँ न गायो
विषयन सँग रह्यौ उरझयो विषयन माँहिं अति सुख पायो
देह कोऊ ही सम्बन्ध राख्यो देह सुखन को ही सार बनायो
हरिनाम न रसना सों गायो मन कामी विषय विकार समायो
जड़ता रह्यो दृढ जन्मन की ऐसो हरि प्रेम को स्वाद न भायो
हाय नाथ काटो मोरे भव बन्धन बाँवरी को जन्म व्यर्थ ही जायो
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