हिय विराजो आन
प्रीत की रीत रंगीलो ही जाने
मेरो मन आत्मा अटकी
तेरो ही नाम रटे मन मेरो अब
भरो मेरो प्रेम को मटकी
आह्लाद से झंकृत हृदय तार मेरो
उतरे कर्ण प्रिय मधुर रस अंतर
तृषित आत्मा कण अमृत पावे
हृदय रटे तेरो नाम को मन्त्र
नए रहस्य करे नित उद्घाटित
मोहिनी रूप प्रभु आप दिखावें
रसराज श्रीचरणारविंद निःसृत रस
बूँद बूँद स्वयम् आप पिलावें
प्रीत की रीत कौन जाने मनमोहन
मेरो तव चरण बढ्यो अनुराग
प्रेम रस मेरो हिय चाख्यो हरि जी
बुद्धि से ना होय कबहुँ व्याख्य
मन के भाव सों करूँ समर्पण पाऊँ प्रीत
ढाई आखर प्रेम सिखावे मोहन मेरो मीत
जीवन मेरो होय सार्थक देखूं तेरो मुस्कान
करे विनय बाँवरी मेरो हिय विराजो आन
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