कब विरह रोग
कब विरह रोग सतावे मुझे
तेरे बिन कुछ नहीं भावे मुझे
कब ताप बढ़े मेरे हृदय का
कब अग्नि भीतर जलावे मुझे
कब सुलग जाऊं मैं कोयले सी
ना जल का स्पर्श बुझावे मुझे
कब होयें व्याकुल प्राण मेरे
कब हृदय पिघल रुलावे मुझे
कब दृग नीर मेरो ना सूखे
ज्वाला सम कब जलावे मुझे
कब विरह दोगे मुझे कान्हा अपना
तेरे बिन कुछ ना दिख पावे मुझे
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