राधा ढून्ढ रही
राधा ढूंढ रही नन्दलाल हाय सखी कहाँ छिप गयो
मेरो मन में मचा है बवाल हाय सखी कहाँ छिप गयो
सुबह गयो सखी यमुना तट पर सब सखा के साथ
लेकर अपनी कारी कांवरिया लेकर मुरली हाथ
देख छवि मैं हो गयी निहाल हाय सखी कहाँ छिप गयो
राधा ढून्ढ रही..........
हुई भोर गईओं संग नित नित वन में कान्हा जावे
राह में छेड़े गोपी ग्वालिनी फोड़ मटकिया माखन खावे
बड़ो उत्पाती यशोदा को लाल हाय सखी कहाँ छिप गयो
राधा ढून्ढ रही.......
हाय सखी मोहन को लाओ भेजो अब कुंजन में
बड़ी व्याकुल भई राधिका अश्रु भरे अखियन में
चित चोर ने कीन्हों क्या हाल हाय सखी कहाँ छिप गयो
राधा ढून्ढ रही..........
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