यूँ तो सुकून
यूँ तो सुकून भी मुझे किराये के मकां सा है
जलता है कुछ भीतर भीतर आँखों में धुआं सा है
ऊँगली पकड़ के साथ भी तुमने ही चलाया था
पीछे से चल रही अपनी परछाई सा बनाया था
क्यों मानते हो अब मेरा रस्ता अब जुदा सा है
यूँ तो सुकून......
यह जिंदगी कभी कभी जली ताप के भार सी
कभी बरसती आँख यह कभी रूह पर बौछार सी
बहता है कुछ कभी कभी भीतर दबा सा है
यूँ तो सुकून......
क्यों जगाते हो सोई कलम क्यों आज कुछ भरा हुआ
मुद्द्त से सूखता जख्म क्यों आज फिर हरा हुआ
यह दर्द तो पुराना था क्यों आज कुछ नयां सा है
यूँ तो सुकून......
हर नई आह पर चलो वाह वाह कर लेते हैं
दवात ए इश्क़ में चलो कुछ स्याही भर लेते हैं
इश्क़ का सैलाब कब आँखों में थमा सा है
यूँ तो सुकून भी मुझे किराये के मकां सा है
जलता है कुछ भीतर भीतर आँखों में धुआं सा है
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