प्रेम प्रेम कहे जग सारा

प्रेम प्रेम कहे जग सारा
प्रेम है क्या मैं क्या जानू
भई तेरी बाँवरी कान्हा
और किसी को ना मानूँ

तुम ही मेरे प्राणधन प्रियतम
तुम कान्हा बांसुरी धारी
जब से लखि सुरतिया तेरी
सुधि बिसरा दी मैं सारी

तुम हो भीतर बाहर देखूं
बाँवरी भई मेरी अखियाँ
नींद गई और चैन गवाया
जागत काटूँ मैं रतियाँ

क्या यही प्रेम की रीत बताओ
क्या है प्रेम की रीत यही
जब तुम हो तो मैं नहीं हूँ
जब मैं हूँ तब तुम क्यों नहीं

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