श्यामाश्याम

राधा कृष्ण बनी हैँ कैसे कृष्ण बने क्यों राधा !
प्रेम की डोर बांध रही दुई प्रेम नित्य अगाधा !!

श्यामाश्याम एक ही रूप हैँ ज्योति केवल एक !
रस वर्धन करन हेतु ही धारे रूप अनेक !!

कृपा स्वरूपिणी श्यामा रस लोलुप हैँ श्याम !
युगल किशोर नित वास जहां वही वृन्दावन धाम !!

वृन्दावन की लता पता और रज व्रन्दावन धाम !
धन्य धन्य वास वृन्दावन कोटि कोटि प्रणाम !!

प्रिये अष्टसखी सब युगल सों नहीं अभिन्न !
रूप धरे शक्ति प्रभु की लीला करें सम्पन्न !!

आन विराजो हिय मेरे अब श्यामाश्याम मेरो धन !
युगल मेरो जीवनधन केवल तुम बिन मैं निर्धन !!

मुझ दीन को आसरो तुम ही तुम ही मेरो प्राण !
करूँ कर जोरि विनय मेरो हिय विराजो आन !!

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