हस्ती मिटा दो

आज जल जाने दो मुझे इस आग में
मेरी रूह को बेचैन होने दो

रोम रोम से नाम तेरा ही निकले
मुझे अब तुम में फनाह होने दो

आह निकले हर साँस से मेरी यूँ
तुम मुझको ऐसे मज़बूर कर दो

ना रहे मुझको कोई एहसास कोई
मुझे हर ख़ुशी से तुम दूर कर दो

तुम ही तुम रहो सिर्फ मेरी चाहत
और मेरी हर चाहत हटा दो

मुझे नहीं रहना तुम बिन एक पल भी
आओ आज मेरी हस्ती मिटा दो

क्या उतरेगी तड़प आज लफ़्ज़ों में मेरी
मुझको और तड़पने की सज़ा दो

मेरा जुर्म है तुमसे मोहबत जो की है
कोई और खता हो तो मेरी बता दो

देना दर्द ही सौगात इश्क़ की मुझे
ना अपनी वफाओं का कोई सिला दो

जो एक पल भी तेरा नाम भूलूँ
मंज़ूर है मेरी हस्ती मिटा दो

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून