बदसूरत हूँ
बदसूरत हूँ रूह से भी
इश्क़ क्या है न जानी कभी
वो भी नादाँ हैं शायद जो समझ लिए
उनको अपना थी मानी कभी
क्या साहिब तुम भी देखते नहीं कुछ
यूँ ही लिख देते हो मन माना
नहीं काबिल हूँ इश्क़ के तेरे
मैंने कब तुझे खुदा माना
यार समझने की भूल की शायद
एहसास हुआ की इश्क़ हो गया
हाय बदकिस्मत हूँ जानती नहीं थी
तुझपर मरने वालों की कमी नहीं जहां में
फिर खुद को आईने में देखा
मुझसा बदसूरत नहीं दिखा
जाओ साहिब यूँ ना दिल रखो
लाखों हैँ खूबसूरत यहां
जाओ वहां जहां कोई होगा
नज़रें बिछाये इंतज़ार में तेरे
इस गली में दर्द ही दर्द है
मत देखो जख्म दिल के मेरे
ये अश्क़ नहीं खून है मेरे दिल का
अपने हाथों से कत्ल कर दिया है
मरता तो नहीं था आज तक तुम पर
जितना भी जिया बस यूँ ही जिया है
लौट जाओ अब नहीं आवाज़ देना
मुझे मेरे दर्द में ही रहने दो
अभी खामोश कर दो गुस्ताख को
रोक लो और नहीं बहने दो
जाने कब से दबी हैं हसरतें
देखो फिर से उछल नहीं आएं
लौट जाओ तुम अपनी गली अब
या हमको कह दो जहाँ से जाएँ
Comments
Post a Comment