गुस्ताख हूं
हाँ साहिब
गुस्ताख हूँ मैं
अदब नहीं मुझे
हो जाती है गुस्ताखी
अब भी अगर कहूँ
मुझे इश्क़ है
तो ये और बड़ी गुस्ताखी
हाँ
यही तो की मैंने
जन्मों जन्मों
और मुझे आया भी क्या
जो पास है
वही दे दिया
क्या करूँ
अब यही पास था
खैर
आप जो चाहो
मंजूर मुझे
मत मिलो
दर्द ही बन जाओ
उम्र भर का
जन्मों का ही
ताकि पुकार तो हो
तड़प तो रहे
और एहसास भी रहे
अपनी गुस्ताखी का
हाँ
अब मुझे इसी दर्द के
साथ ही जीना है
पल पल का दर्द
तुमसे दूर होने का
अपने अधूरेपन का
ये दर्द कबूल किया मैंने
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