सुधि लो नाथ

हे मेरे नाथ !
मेरी प्रार्थना सुनो
मेरी बुद्धि क्यों भटक जाती है
क्यों आपको छोड़
संसार के विषय भोग
में लग जाती है
क्यों इस बुद्धि से
अहंकार नहीं जाता
जो तुमसे मिलने नहीं देता
तुम्हारे संग का एहसास
छीन लेता है
हे नाथ !
मेरा अहंकार मिटाओ
मुझे बुद्धिहीन करदो

हे नाथ !
मेरी जिव्हा
क्यों तुम्हारा नाम नहीं लेती
क्यों इसे नाम में रस नहीं
संसार में रस ढूंढती है
आपका नाम क्यों नहीं निकलता
ऐसी जिव्हा का होना व्यर्थ है
हे नाथ !
मुझे जिव्हा हीन करदो

हे नाथ !
मेरे कर्ण
क्यों आपका नाम
यश गुण
नहीं सुनते
क्यों इनको कहीँ और रस है
इनको आपके नाम गुण लीला
में आनंद क्यों नहीं
मुझसे मेरी श्रवण शक्ति ले लो
हे नाथ !
ये मेरे किसी काम के नहीं

हे नाथ!
मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
आपके बिना अधूरा है
क्यों कट रहा
आपके बिना
जबकि इस जीवन का
कोई मूल्य नहीं
आपके बिना
हे नाथ !
मुझे जीवन विहीन
ही कर दो
मुझे पल पल आपका
ही स्मरण चाहिए
ये नहीं होता
किसी योग्य नहीं
हे नाथ !
सुधि लो मेरी
सुधि लो अब
मेरे नाथ!

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