मैं गुनाहगार हूँ
मैं गुनहगार हूँ ना जीने का सबब आया
कैसे दीदार करूँ ना आँख में अदब आया
मैं गुनाहगार हूँ.......
हाँ मैंने तुझसे ही मोहबत करना सीखा है
क्या है उसूल इसके और क्या तरीका है
तेरा इश्क़ ही मुझमें जीने की तलब लाया
मैं गुनाहगार हूँ.......
क्या मुझको रोक सकोगे तुम इश्क़ निभाने से
नहीं डर है उसूलों और का नहीं जमाने से
तेरा इश्क़ ही मुझमें ये हौसला अजब लाया
मैं गुनाहगार हूँ.......
मुझको इश्क़ अपना हर हाल में निभाना है
महबूब की ख़ुशी में ही मुझको सर झुकाना है
यही अंदाज़ मोहबत का मेरा मजहब लाया
मैं गुनाहगार हूँ.......
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