लिखी मैंने पाती

लिखी मैंने पिया को पाती मोहन अब आ जाओ
मोहन बोले राधे प्यारी नैन खोल यहीं पाओ

मैं तो यहीं हूँ कहीँ गया ना तुमने क्यों नहीं देखा
हो मेरी ही बाँहों में फिर क्यों विरह की रेखा

राधा बोली मोहन मोहन कहाँ गए तुम प्यारे
चैन मुझे पल भर भी ना आए आओ अब बनवारे

मोहन संग ही बैठी श्यामा फिर भी रहती खोई
जाकर मेरे मनमोहन को पाती देयो मेरी कोई

उनसे कहना बहुत दिन हुए मोहन कब हो आना
बहुत दिन हुए सुनी बाँसुरिया अब तो तान सुनाना

भूल गयी राधिका संग ही हैँ मोहन ऐसे विरह सतावे
कौन घड़ी हो मोहन से मिलना कौन घड़ी हाय आवे

हाय सखी श्याम संग श्यामा फिर फिर श्याम पुकारे
कब देखूं युगल छवि मैं कब जाऊँ बलिहारे

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