काहे पीहू पीहू
काहे पीहू पीहू पपीहा तू गावे
काहे बिरहन को जिया जलावे
काहे पीहू पीहू......
पीर उठे मेरो हिय में भारी
हाय मुझे छोड़ गए गिरधारी
अँखियन में नहीं नीर समावे
काहे पीहू पीहू......
कागा मेरो सन्देस ले जाओ
मन नहीं लागे पिया जल्दी आओ
तेरो बाँवरी व्याकुल भई जावे
काहे पीहू पीहू.......
हिय में विरह की पीर मेरो भारी
कबहुँ मेरो सुधि लें बनवारी
कबहुँ मुरली की तान सुनावें
काहे पीहू पीहू........,
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