अधूरी ख्वाहिश
हाँ तेरे मिलने का एहसास हो रहा मुझको
नज़र ने नहीं देखा पर रूह ने महसूस किया है
नज़र को अब भी तलाश तेरी है
रूह तो कब की ही तेरी थी समझ अब आया
आ जाओगे एक दिन नज़र में भी तुम
जब तक रूह तुमको यूँ उतार ना ले
अभी तेरे एहसास के साथ जीना है
तेरा एहसास ही तेरा इश्क़ बन गया है
तुम कहाँ मुझसे अलग हो मुझमें ही घुल रहे
इन तरसती निगाहों को बन्द कर रूह से देखूं तुम्हें
क्या यही इश्क़ है जो आँखों को नहीं दीखता है
रूह भर भर तेरे इश्क़ के जाम पीती है
आँख रहती है ढूंढती हर और तुम्हें
और रूह तेरे ही एहसास को ही जीती है
लगता है रूह और आँखों में कशमकश सी हो चली
हर कोई अपनी ही बात मानने को बेताब है
रूह कहती है आँख तू आँख खोल अपनी
हर और तो साहिब का जलवा आफताब है
एक अधूरी सी ख्वाहिश को कुछ पल जिया मैंने
अब उस पल को पल पल याद करके जीती हूँ
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