दर्द

क्या रोज़ रोज़ नुमाइश करें दर्द की हम
हमें इस इश्क़ ने तमाशा ही बना डाला
लगा रखी है आग और हँसते हैं ऊपर से
हमको जीते ही इस आग में जला डाला

या तो हमको यूँ ना बनाते ना एहसास देते
दे दिया है तो मिल भी जाओ कभी
नहीं हम तुमको देख सकते दर्द में इतने
तुम भी मेरा दर्द देखने तो आओ कभी

दर्द हैं खाने को और अश्क़ हैं पीने को
ये तेरे इश्क़ की  हैं हमको  सौगातें मिलीं
आहों के तूफ़ान मिले पल पल उठने वाले
आँखों से बह रहे अश्कों की बरसातें मिली

खुद से ही नाराज़ रहतें हैं अक्सर
मेरी किसी से नराज़ होने की औकात नहीं
खुद ही आग लगा बैठे हैं हम
बुझा देगी अश्कों की बरसात कभी

मुझसे तो नाराज़ ही रहे यार मेरा
क्या तेरे खेल है  सब जाने तू
हूँ खिलौना चल खेल ले मुझसे
मेरे कहे से कहाँ कुछ माने है तू

तुझे मज़ा भी मिले जो इस दर्द के खेल में
चल मुझसे खेल और दर्द दे मुझको
है वादा दीवानगी कम नहीं होगी मेरी
ख़ुशी सब तेरी ही बस दर्द दे मुझको

अब तेरा इश्क़ खामोश कर चला
हूँ नशे में ऐसे मदहोश कर चला
यार मुझे होश में तुमने क्यों रखा है
दर्द से अब दिल बेहोश कर चला

चल तेरी तड़प ही है इनाम मेरा
लब से कभी ना जाए कभी नाम तेरा
जो भी होगा फैसला कबूल कर लेंगे
हम यूँ ही पीते रहेंगे दर्द का जाम तेरा

नहीं देनी ज़िन्दगी तो मौत ही देते
हम क्यों ज़िंदा होने का इंतज़ार करें
तेरा हक़ है दे चाहे तू दर्द कितने
और चाहे इस टूटे दिल को बेकरार करें

आ कत्ल कर दे सब हसरतों का मेरी
अब इन बेताब हसरतों का कोई मोल नहीं
कोई वज़ूद नहीं मेरा इस जमीन पर अब
आँख में पानी है नमकीन अश्क़ अनमोल नहीं

आ कत्ल कर दे सब हसरतों का मेरी
अब इन बेताब हसरतों का कोई मोल नहीं
कोई वज़ूद नहीं मेरा इस जमीन पर अब
आँख में पानी है नमकीन अश्क़ अनमोल नहीं

क्यों छेड़ बैठे हो सुर दर्द के तुम
हमको खामोश रहना ही बेहतर था
क्यों अपने इश्क़ की नुमाइश कर डाली
कुछ बेहोश रहना ही बेहतर था

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून