दर्द
आजकल इसी लहजे में जवाब आते हैं सबके
सोचती हूँ की सबसे पूछना बन्द करदूं
फितरत ही कुछ ऐसी बन गयी मेरी
बात बात पर सबको जख्म ही दिए
मेरे अंदर एक गुस्ताख शायर रहता है
मुझे जीने नहीं देता
कमबख्त मरता नहीं
कशमकश ना हो खामोश ही रह लूँ
यूँ ही मेरी ज़िन्दगी में तूफ़ान बहुत हैँ
चन्द लफ्ज़ इधर से उधर किये
और खुद को शायर मान लिया
इश्क़ की ओकात नहीं साहिब
खुद को इश्क़ में मान लिया
समझ लो कोई कलम दे गया
और अपने से दूर कर गया
हम उसी का नाम लिख लिख
समझे की उसके करीब हैँ
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