अब मुझे दर्द ही

अब मुझे दर्द ही दर्द तेरा पी जाना है
इश्क़ की सौगात है ये महबूब का नज़राना है
अब मुझे दर्द .......

तेरे बिना महबूब नहीं कोई हसरत मेरी
तेरे कदमों में ही है अब तो जन्नत मेरी
अब ये जन्नत छोड़ भला और कहाँ मुझे जाना है
अब मुझे दर्द.......

हस कर कबूल कर लूँ मैं इश्क़ के दर्द सारे
तेरे सिवा और कहाँ जाऊँ बता मेरे प्यारे
तेरी मेरी मोहबत का दुश्मन क्यों जमाना है
अब मुझे दर्द.......

खत्म कर दो मुझे जो मैं और किसी को चाहूँ
तू ही है मन्ज़िल मेरी बस तुझ
में ही खो जाऊँ
बस मुझे इस इश्क़ की आग में ही जल जाना है
अब मुझे दर्द........

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