तड़पाते रहो
तेरे इश्क़ की आग में जल रहे हैँ
ये आग यूँ ही जलाते रहो
ख़तम ना हों कभी ये सिलसिले अब
यूँ ही मुझे तड़पाते रहो
कह दो कभी नहीं मुझको आना
लाख आवाज़ चाहे लगाते रहो
काट डालो जिस्म ये मेरा अब
कतरा कतरा लहू बहाते रहो
दो इतना दर्द मुझे की रोम रोम जले
फिर कहना आवाज़ लगाते रहो
है अगर इश्क़ तुमको अगर मुझसे
मेरी हस्ती फिर मिटाते रहो
फनाह करो या तबाह करो मुझको
बस तुम ही मुझमें समाते रहो
गुम शुदा करो मुझे कोई पता न रहे
फिर अपना पता ही बताते रहो
तुझको मेरे इश्क़ की कसम मार डालो मुझे
हर पल मुझे यूँ तड़पाते रहो
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