मेरी राधा मेरी स्वामिनी
मेरी राधे
मेरी स्वामिनी
हूँ मैं अयोग्य
हर अवगुण है मुझमें
लोभ हो गया है
आपकी सेवा का
हूँ लोभी
चन्चल हूँ
क्योंकि मन टिकता नहीं संसार में
आपके चरणों के ध्यान मात्र को लौट आता है
आनंद के लिए
स्वार्थी हूँ
क्योंकि आनंद ढूंढती हूँ
श्री चरणों में
धोखेबाज़ हूँ
हर साँस धोखा है
क्योंकि आपके नाम के बिना जा रही है
और कितने अवगुण कहूँ
कोई अंत भी तो हो
पर आप तो करुणामयी हो
मेरे अवगुण दूर करो
आपकी एक नज़र ही
हो जाए
लाडली जू
ऐसे ही अपना लो मुझे
मेरी राधे
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