अवगुण भरा
अवगुण भरा हृदय नाथ मेरा कैसे सम्मुख आऊँ
नहीं कोई जप तप साधन गुणहीना कैसे रिझाऊँ
नहीं गुण कोई मैं गुणहीना नाथ दया की दृष्टि करदो
नहीं समान कोई दुष्ट और कामी अब अपनी करुणा से भरदो
तुम ही सुनो मेरी व्यथा नाथ अब और किसे सुनाऊँ
अवगुण भरा........
पतित मैं तुम पतितपावन हो नाथ मुझे अब नहीं बिसारो
जैसी भी हूँ तेरी शरण अब मेरा फूटा भाग्य सवारो
तेरे द्वारे पड़ी मोहना मैं और कहाँ अब जाऊँ
अवगुण भरा.........
करुणा के सागर हो भगवन् करुणा बरसती रहे तुम्हारी
जो कोई शरण तुम्हारी आये उसकी सुधि लेते बनवारी
प्रेम अश्रु ही मेरा समर्पण और क्या नाथ चढ़ाऊँ
अवगुण भरा........
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