तुम्हारा प्रेम
प्रेम
कैसा है आपका प्रेम
कभी कभी एहसास होता है
फूलों की खुशबू में
हवाओं की छुअन में
डालियों के हिलोरों में
पानी की लहरों में
फ़िज़ा की खुशबू में
पक्षियों के गीतों में
घुँगरू की आवाज़ में
मोर के नाच में
कोयल की कू कू में
पपीहे की पीहू पीहू में
हाय
वो हिलती हुई डालियाँ
जैसे तुम ही बुला रहे
बाहें खोल कर
ऐसा प्रेम
फिर
एहसास क्यों बदल जाते
जैसे तुम हो ही नहीं
नहीं दीखते कहीँ भी
वही सब चुभता है
मन को जला देता है
वही स्पर्श ताप बढ़ा देता
हाय वही कोयल मोर पपीहे
क्यों जलता है इनका नाच गाना
क्यों
क्योंकि तुम संग नहीं
क्यों करते हो ऐसे
क्यों मिलते हो
एहसास में ही
फिर बिछड़ते हो
कोई एहसास नहीं
मेरे मोहन
मेरे कान्हा
क्या ऐसा ही होता है
तुम्हारा प्रेम
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