तेरे सज़दे में
तेरे सज़दे में खुद को भुलाए बैठे हैँ
हम अपने सारे निशाँ मिटाए बैठे हैं
नींद तो उस रोज़ ही ले गए थे तुम
जिस रोज़ तुमने मेरा नाम लिया लबों से
तब से हम मुस्कुराए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में........
तुम रोज़ रोज़ लौट आते हो अब
कभी ठहर भी जाओ के तुम ही रहलो
हम कब से निगाहें बिछाये बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
अगर तुमको मोहबत की ना आदत होती
तो मेरी दुनिया यूँ ना रंगीन होती
तेरे रंग से ही सजाए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
तुझपर कुर्बान हो चुकी हूँ कबसे
जानते हो तुम फिर भी हसते हो
और हम भी मुस्कुराए बैठे हैं
तेरे सज़दे में..........
रौनक ए शहर भी लौट आएगी अब
तुम अगर लौट कर नहीं जाओ
अब तुमसे ही रोशनाए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
तेरे बिना काफिर हो चली थी जिंदगी
तूने छुआ तो तुझसी ही पाकीज़ हुई
हम तो अब इसको लुटाए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
चाँद तारों की महफ़िल में चल चलें हमदम
एक तुझको एक उस चाँद को कभी देखूं
दोनों के अक्स भुलाए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
खुद को कत्ल ही कर देते गर तू नहीं मिलता
तू भी लौट आता है शायद इसी ख़याल से अब
और कितने गम दबाए बैठे हैं
तेरे सज़दे में.........
मेरे लफ़्ज़ों में अब बोलते तुम हो
नज़र से दूर जाने क्यों हुए गुम हो
हम तेरी याद सीने से लगाए बैठे हैँ
तेरे सज़दे में..........
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