जाए ना मन की पीर
सखी !
जाए ना मन की पीर
दूर देस बसे पिया मेरो
हाय बाँवरी भई अधीर
सखी !
जाए ना मन की पीर
भूल गए मोहे मोरे पिया जी
अब तक सुधि ना लीन्ही
भई बाँवरी बिरहन तेरी
झरे मेरी अखियाँ बहावें नीर
सखी !
जाए ना मन की पीर
बिरह की मारी इत उत डोलूं
सखियों से भी कुछ नहीं बोलूं
पीर विरह की मन में घोलूँ
हाय कब तक रहूँ अधीर
सखी !
जाए ना मन की पीर
सुधि भूली जगत की सारी
पिया छवि पर जाऊँ वारी
कबसे बाट निहारूँ तिहारी
हरो पिया अब मन की पीर
सखी !
जाए ना मन की पीर
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