मेरी कलम

आपका प्रेम
अद्भुत है
क्या कहूँ
ये कलम भी आपने दी
इस प्रेम की सौगात
क्यों लिखवाये मुझसे
क्या मन की नहीं समझते आप
सब समझते हो

फिर क्यों

क्यों दी कलम
आज तक कुछ लिख नहीं सकी
जिससे आपको आनंद हो

हर समय रोना धोना ही
और सबसे ज्यादा
आपसे लड़ाई ही
उलाहने ही लिखे
कभी प्रेम गीत तो न लिखे

कभी सोचा
ये सब गलत करती हूँ
चलो आपको लौटा दूँ
रख लो कलम आपकी
खुद ही रख लो
मैं तो बुद्धिहीन हूँ
यही सब लिखती हूँ
फिर पढ़ पढ़ रोती हूँ
रोज़ का ही काम हो गया
झगड़ा करना
ताहने उलाहने लिखना

आप तो देखते रहते हो
आनंद लेते रहते हो
इन सबका भी
मैं भी क्या करूँ
मजबूर हो लिख ही देती हूँ

फिर सोचा
अब नहीं लिखूं
लौटा दूँ
आज पक्का सोच लिया
नहीं रखनी मुझे
लौटा दूंगी

तभी
तभी
आज आप भाव दिए
श्री जी के लिए
उनकी सेवा की अभिलाषा हो गयी
धन्य हो गयी ये कलम
कैसे नहीं लिखती ये
श्री जी के प्रेम के लिए
है तो अयोग्य ही
उनका प्रेम नहीं समा पायेगा
किन्हीं शब्दों में

फिर भी
सफल हो गयी आज
अब नहीं लौटाऊंगी
कान्हा जी
अब रखूंगी इसे
श्री जी की सेवा में ही
है तो प्रेम की
सौगात ही
अब सम्भाल लूँगी

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