क्यों बढ़ाते हो बेकरारियां

क्यों बढ़ाते हो बेकरारियां रह नहीं सकेंगें हम
क्या है हाल ए दिल सनम कह नहीं सकेंगें हम
क्यों बढ़ाते हो........

ना बढ़ाओ धड़कनें इतनी की सुन भी नहीं पाओ
मत बिखराओ मुझे इतना कि तुम चुन भी नहीं पाओ
मत समेटो इन दीवारों में कि बह नहीं सकेंगें हम
क्यों बढ़ाते हो.........

कैसे कहें हाल ए दिल तुम्हें खुद आकर देखो ना
मेरा भी हाल सुन लेना कुछ अपनी भी कहो ना
बह रहे हैं अश्क़ मेरे अब कह नहीं सकेंगें हम
क्यों बढ़ाते हो.........

है दिल को यकीन की इक रोज़ तुम आओगे
ना था कभी यक़ीन की ये हाल बनाओगे
नहीं रह सकोगे तुम भी तो कैसे रहेंगें हम
क्यों बढ़ाते हो ..........

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