लीला लीलाधारी की
लीला उस लीलाधारी की
मैं मूर्ख क्या जानूँ जी
मैं तो दासी बिना मोल की
उनको अपना मानूँ जी
ये अभिलाषा सेवा में रखें
सेवा करना चाहूँ जी
सेवा का भी भान रहे ना
ऐसी करुणा माँगू जी
मेरी स्वामिनी प्रसन्न होयें
यही बस मैं सोचूं जी
चरण आपने शीश धरो जी
यही स्वामिनी मांगू जी
राधा राधा नाम रटूं बस
यही रटना लगाऊँ जी
राधे रानी कृपा करें जी
उनकी सेवा पाऊँ जी
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