ऐसे न था
कुछ सम्भलती हूँ फिर गिर पड़ती हूँ
कुछ हसीं फिर रो पड़ती हूं
कुछ याद रखी फिर भूल गयी
कुछ प्रेम किया फिर तड़प गयी
कुछ देखना चाहूँ तो दिखा नहीं
कुछ सुनना चाहू तो सुना नहीं
कुछ होश चाहूँ तो होश नहीं
हाय ये सब क्या है
क्यों है
ऐसे
ऐसे तो नहीं चाहा था
की ऐसे भी जीना होता है
लगता नहीं था प्रेम भी जहर सा
घूँट घूँट पीना होता है
आग और सुकून इक्कठे
कभी नहीं सोचा था
क्यों
ये जो भी हुआ
बिना सोचे ही हो गया
सोचती तो हो पाता
नहीं
तुम कभी सोच में नहीं आते
कभी जानने में नहीं आते
कैसे आओगे
नही आ सकते
तो मान लिया
कान्हा
तुम मेरे हो
बस मेरे हो
कान्हा
मेरे कान्हा हो
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