कद मेरी पीड़ मुकावेंगा
मैनू तेरे कोलों टुटयाँ
बीत गईयां कई सदीयाँ
कद साहिब घर आवेंगा
कद मेरी पीड़ मुकावेंगा
लंघ चल्लीयां बहुत उमरां
अधूरियां ने कई सद्धरां
दस कद पूरियां पावेंगा
इक वार मैनू मिल जावेंगा
कद मेरी पीड़ मुकावेंगा
मैनू तेरे कोलों..........
क्यों दूर किता अपणे तो मैनू
ऐना मजबूर किता लभणे नू मैनू
हर गली विच तैनू लभदी फिराँ
कदे ना कदे लभ जावेंगा
कद मेरी पीड़ मुकावेंगा
मैनूं तेरे कोलों.....
तेरे बिन नहीं मैं कख सजणा
करीं ना चरणां तों वख् सजणा
रौंदी पयी मेरी अख् सजणा
कद घुट सीने नाल लावेंगा
कद मेरी पीड़ मुकावेंगा
मैनू तेरे कोलों......
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