दर्द भरे अफ़साने

क्या सुनाएँ दर्द भरे अफ़साने को
कुछ नहीं अब सिवा जख्म दिखाने को
नहीं मिलता सुकून कहीँ इस रूह को कहीँ
हाय उम्र निकल गयी तुझे मनाने को

क्यों ऐसी मन्ज़िल की तम्मना करली
क्यों मैंने सुकून ए दिल गवा दिया
इल्म होता तो इश्क़ नहीं करती
हाय मैंने क्यों दिल लगा लिया

मैं कभी इश्क़ तुमसे ना करती
जो पता होता की यूँ जलाओगे तुम
जितनी पिलाई प्यास उतनी बढ़ती गई
इस कद्र प्यासा ही क्या छोड़ जाओगे तुम

हैं दिल के गम जो लफ़्ज़ों में उतर रहे
क्या तुमको कभी हाल ए दिल सुनाएं हम
मत करो याद हमें और ना ही याद आओ
बेहतर होगा कि तुझे ही भूल जाएँ हम

ए खुदा मौत भी दे दे इस कद्र तड़पने से
कुछ बेहतर इलाज़ हो दर्द ए दिल का
अब हाल कहा ना जाए ना ही सहा जाए
क्या करूँ बता क्या हल है मुश्किल का

क्यों तुम दर्द के सौदागर हो
मुझको कुछ और दर्द देते जाओ
जितने भी हैं पास तेरे सब मुझे दे दो
तुम मुस्कुराते हुए ही चले जाओ

थोड़े से दर्द से ही परेशान हूँ मैं
अब मुझे अपने सारे ही दर्द दो साहिब
अब इस गली में बस दर्द मिलते हैं
तुम कहीँ और ही रुख करो साहिब

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून